ikshit
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दशानन “देश में” है फिर से हरा-भरा!
हम मना रहे हैं “मुहल्लों में” दशहरा!
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मन में इच्छित जी के
हौले से उबल रहा है शोर
रात्रि-तम की प्रत्यन्चा पर चढ़
हृदय-प्रेम तीर प्रति क्लेश को दे झंझोड़!
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रावण हैं इतने ढेर सारे
सामने चारों ओर!
पर अग्नि-अंत कैसे शत्रु को दें
अंदर का राम आज खुद है कमजोर!
कुंडली-जागरण की कथा आज प्रथा नही
मानव मानव का सखा नही
पर्व विजय-दशमी का आज
समर्थ का धन व्यर्थ करता घनघोर!
व्यथा अपनी इच्छित जी कह रहे
उद्देश्य रंगीन रावण जलाने से पूर्ण नहीं
पूर्ण दशहरा पर्व तब है
जब बैठ संग जनता के दशानन भी लंका-दहन आनंद ले पुर-ज़ोर!
!! जय श्री राम !!
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