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!! थोड़ी सी धूप !!

ikshit
ikshit
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वो थोड़ी सी धूप

वो थोड़ी सी धूप
मेरे हिस्से की
आज मेरी छत पर आती नहीं.
वो
खुद की मस्ती मे बहती थी जो हवा
कोई कहानी नयी अब सुनाती नहीं.
की अमीरों की कोठी
और इंसान की तरक्की
आज बढ़ रही है
कुछ इस कदर
वो जो
सामने की छत पर
लड़ते थे नैनों के पेंच
और बलखाती सी
वो जो चढ़ती थीं
इश्क़ की जवानियाँ
वो आशिक़ी तो
आज कुलमूलाती भी नही.
कि वो हर गुज़रे कल की शाम
आज पूरे दिन
हमे रूलाती रही.
वो थोड़ी सी धूप
मेरे हिस्से की
आज मेरी छत पर आती नहीं.

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