ikshit
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चाँद भरी दोपहरी
करिश्मा बड़ा अनमोल है…
धूप संग चाँदनी की तरावट
बारिश मोहक घनघोर है!
मज़हब के पैमाने पर
कौन पाएगा इनायत कितनी
बनाने वाले खुदा के लिए भी
ये मुश्किल… बड़ी बेजोड़ है.
चाँद भरी दोपहरी…
करिश्मा… …!
ना शुरू, ना आख़िरी कोई
ना कसमसाहट बड़े-छोटे की
इसीलिए तो उसने
दुनिया बनाई गोल है…
तरह-तरह के वक़्त तैराना
जिसका अंदाज़-ए-शौक है!
चाँद भरी दोपहरी…
करिश्मा… …!
हम लड़-मरें सब
कितना-कितना कर के…
मुमकिन तो होगा बस उतना ही
जितनी… उसने छोडी डोर है!
चाँद भरी दोपहरी…
करिश्मा…
बड़ा अनमोल है !!!
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