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बस… थोड़ी सी धूप और … Contest

ikshit
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ग्रहिणी… कृपया कर के इसे इत्यादि ना लें…
बस आज की आदतों पर
पुराने कल की
थोड़ी टाँग खींचने की कोशिश की गयी है…
बस… आप के दिमाग़ का साथ
और हास्य पर आप की दाद चाहूँगा…

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बस… थोड़ी सी धूप और …

जिंदगी
बड़ी जंग बन रही है
संग हमारे
हमारे कायदों से
‘ये’ बड़ी दंग बन रही है!
फ़्रिज़ और अवन ने
वो क्रांति ला दी है
रसोई-घर के किरदार में
उनके हाथों के स्वाद पर
रोज़ एक नयी जैसे भंग बन रही है…!
कि बचे-खुचे पर
स्वाद का तड़का
और स्वास्थ्य पर
रोज-रोटी-अनुसंधान हल्का-फुल्का
नये वक़्त की
नयी आदत
आज
बड़े सलीके से पल रही है.
कि अक्सर
बच्चों के स्कूल जाने से पहले
उनके टिफिन-बॉक्स में
पराठे भर तो जाते हैं
पर फ़्रिज़ से निकले सामान से भर कर
सिंकने के बाद
कई बार तो खुद उन पराठों को नहीं पता होता
कि वो किस चीज़ के बने होते हैं.
दोस्त पूछ भी लेते हैं स्कूल में कई बार
जवाब भी मिलता है हर बार
आज मेरी माँ ने सुबह उठ कर बनाया था…
पर आख़िर क्या
यही सवाल तो बार- बार
नतीजे पर पहुच नही पाया!
खैर…
कोशिशें तरह-तरह से
हर रसोई-घर में पल रही हैं,
पाक-कला के प्रयोग पर प्रशस्ती
आज बड़ी प्रफुल्लित बन रही है
कि कई बार तो होता है महसूस
आलू के पराठों की विरासत
अँग्रेज़ों के किचन मे कुर्क हो कर
अपनी हस्ती ही धुन रही है.
चूल्हे की कुदरती आँच पर
चोखा-बाटी की सदियों पुरानी वो छौन्क…
जैसे मौसम की पहली बारिश में
नथनों तक पहुचती सोंधी मिट्टी की ओस…
दिन भर खेतों में काम के बाद
शाम की थकान पर
मटके के मीठे पानी की वो तरावट
और कलेजे को सुकून देती हर वो राहत
आज बी पी की बीमारी की बौराहट में
गुन्थ रही है.
ऊँची इमारतों की छाँव में छिपी
सुबह के सूरज की
पहली धूप
आज जैसे जिंदगी से बुझ रही है.
बस अपनी थोड़ी सी ताज़गी के लिए
जिंदगी आज
सच में
बड़ी जंग बन रही है!

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