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शहर-ए-शहर लखनऊ

ikshit
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अदब-तहज़ीब जहाँ का नारा
शहर लखनऊ वो नयनों का न्यारा!
साइकिल जहाँ इंसान चलाए
धूप जले राहगीरों को हाथी ने जहाँ दिया सहारा,
कमल जहाँ कीचड़ में खिले दिलों पर गहरा
हाथ के पंजे का दिखा दम जनता ने जहाँ खुद को उबारा,
बस झाड़ू की बरबस अब तक साख नहीं
कल को जो फ़िरेगी ये, होगा जाने क्या-क्या नज़ारा
पान की पिचकी पीक पर पैना पल कर
हिन्दुस्तानी नवाबी रूख़ का पूरी दुनिया में जिसने किया उजियारा
कहें इच्छित जी बारंबार उसी नवाबीपन में संवर कर
धन्य ये लखनवी-पन ये हमारा…
धन्य-धन्य यहाँ जन्मा जीवन ये प्यारा!
अदब-तहज़ीब जहाँ का नारा
शहर लखनऊ वो नयनों का न्यारा!

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