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चुनाव
हम खुद जब करते हैं
‘ये’ या ‘वो’
कितनी अटकलें
कितनी परेशानी होती है!
जिंदगी का
बस एक सवाल भर होता है
फिर भी मन की तस्वीरों में
कितनी संभावनाओं की चुहलबाजी होती है.
‘ये’ या ‘वो’
तय हो जाने के बाद भी
सोचने के लिए कितनी उलझनें
और कितनी आज़ादी होती है.
अब
पूरी की पूरी सरकार का चुनाव…
ज़रा गौर से सोच कर देखें
अरब लोगों के हमारे देश को
चलाने वाली सरकार को
सक्षम रूप में चुनने का चुनाव!
अगर ये सवाल
रोज-रोज का मुद्दा बन जाए
केजरीवाल जी खुद सोच कर देखें
ज़रूरत से भी कुछ ज़्यादा ही खिलवाड़ जैसी
ये आज़माइश नहीं लगती !!!
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बिजली, पानी की कीमत घटा दी थी.
सरकार हटते ही बढ़ा दी गयी.
सब कॉंग्रेस की चाल थी.
ठीक है…
अब भाजपा की सरकार आ रही है.
उनसे ही मौका माँग कर देखें.
ये क्या बार-बार नयी सरकार?
केजरीवाल जी
अबकी बार मोदी सरकार
आप सिद्धू जी से सीखो…
ठोंको … विचार… !!!
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